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पैसा पैसा हाय पैसा

By

Dr. Abhishek Kumar Pandey

Department of Botany, Kalinga University, New Raipur-492101

abhishek.pandey@kalingauniversity.ac.in

 राजा भोज जब एक बालक थे तब उनके चाचा मुंज विदिशा में राज कर रहे थे तब एक ज्योतिषी उनके दरबार में आया। राजा के कहने पर उन्होंने भोज की कुंडली देखी ‌और देखते ही बोले-महाराज ये बालक पचपन साल तक अखण्ड भारत का सम्राट रहेगा । राजा ऐसी भविष्यवाणी अपने पुत्र के लिए चाह रहा था परन्तु भोज के लिए ऐसा सुनते ही वो सबके सामने प्रसन्नता का ढोंग करते हुए अंदर से दुखी हो गया । दुखित अवस्था में रहने के बाद उसने अपने सब से विश्वसनीय मंत्री वत्सराज को आज्ञा दी कि भोज को जंगल घुमाने के बहाने ले जाओ और वहां इसकी हत्या कर दो  । मंत्री वत्सराज बालक भोज को जंगल ले गए । और बताया कि वो राजाज्ञा से बंधे हैं और उनका वध करने का आदेश प्राप्त हुआ है यदि उनकी कोई इच्छा और कोई संदेश हो तो वो बेशक बता सकते है। उन्होंने कहा यदि आप अवसर दे तो मैं जरूर अपने चाचा के लिए संदेश भेजना चाहता हूं। उसी समय उन्होंने कुछ पत्ते लेकर अपनी जांघ के रक्त से ये श्लोक लिखा

मान्धाता च महीपतिः कृतयुगालंकारभूतो गतः।*

सेतुर्येन महोदधौ विरचितः क्वासौ दशास्यान्तकः।।

अन्ये चापि युधिष्ठिरप्रभृतयः याता दिवं भूपतेः।

*नैकेनापि समं गता वसुमती नूनं त्वया यास्यति।।

अर्थात सतयुग में सम्पूर्ण पृथ्वी में राज करने वाले  मान्धाता भी चले गए। महासागर पर बांध बांधने वाले और रावण का वध करने वाले राम भी चले गए। महाभारत का युद्ध जीतने यशस्वी युधिष्ठिर भी इस दुनिया में नहीं है हे राजन ये पृथ्वी, ये धन सम्पदा आज तक किसी के साथ नहीं गई। क्या ये तुम्हारे साथ जायेगी?

              बालक भोज की वो बातें आज भी कितनी प्रासंगिक है।अनीति से, अधर्म से, चोरी से, दूसरों को सता कर हम पैसे कमाने की होड़ में लगे हुए हैं। कुछ दिन पहले एक सिम लेने गया वो सिम सिर्फ ५० रूपए की थी लेकिन मुझे २०० रुपए की दी गई। वर्तमान में लोगों के मन का लालच खत्म नहीं हो रहा सुख सुविधा और भौतिकवादी जीवन जीने की इच्छा ने हमारे मन की संवेदना को खत्म कर दिया है। अब हम किसी के दुख और परेशानी को महसूस नहीं कर पा रहे हैं। मैं कुछ साल पहले एक स्कूल में अध्यापक था वहां बात बात पर पैसे काटने का प्रावधान था। एक मिनट स्कूल देर से पहुंचे तुरंत पैसा काट लिया। कुर्सी पर बैठ कर पढ़ाते मिले पैसे काट लिया गया। भिन्न भिन्न कारणों से पैसे काटने का तरीका निकाला गया। ऐसा अध्यापक जो हर समय अपनी तनख्वाह के कट जाने के डर से विचलित रहेगा वो क्या पढ़ायेगा उस तनावपूर्ण माहौल में वो उन बच्चों के अंदर कैसे संस्कार डाल पायेगा । परन्तु इससे किसी को कोई मतलब नहीं है। प्रबंधन के पास इस तरीके से कुछ और पैसे इकट्ठे हो रहे हैं वो इसी में खुश है। इस तरीके की मानसिकता शैक्षणिक संस्थानों के लिए खतरे की घंटी है। शिक्षक का दर्जा समाज में सबसे उच्च है उससे गलती की अपेक्षा नहीं की जाती है। लेकिन भूल होना मानवीय समस्या है संसार में ऐसा कोई नहीं जिससे गलतियां ना होती हो । शिक्षक भी मनुष्य ही है। उसे अपने दायित्व निर्वहन का पूरा समय मिलना चाहिए । इसी तरीके से कमोबेश हर व्यवसाय का हाल है। जो जितना बढ़ा है वो उतनी बड़ी लूट खसोट में लगा हुआ है। बगैर उचित अनुचित का विचार किए हुए। श्री प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं ऐसे पैसे जो धर्म को धक्का मारकर अधर्म से कमाये जाते हैं वो पैसा आपको स्वयं में ही नष्ट करने की क्षमता रखता है इसके लिए आपको किसी शत्रु की आवश्यकता नहीं है। इसीलिए साधुजनों को चाहिए पैसा कमाते वक्त शुभ और अशुभ का विचार अवश्य करें। पैसे में बड़ी ताकत है। धर्म से कमाया हुआ पैसा ही भोग करने योग्य है। इस देश में भ्रष्टाचार का भी सबसे बढ़ा कारण हमारी संवेदनहीनता और अंधाधुंध अधर्म और अनीति से पैसे कमाने की होड़ है इसलिए एक किसान से पटवारी और तहसीलदार को घूस मांगने में शर्म नहीं आती। सभी सरकारी दफ्तरों के रेट फिक्स कर दिए गए हैं।इस अनीति पूर्वक धन अर्जन से किसका भला हो रहा है। राष्ट्र के लोगों का चरित्र ऊंचा नहीं है तो राष्ट्र नहीं है कुछ जानवरों का समुह है। इसीलिए अर्थ का काम बढ़े विवेक से करना चाहिए। आचार्य चाणक्य अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र में कहते हैं कि व्यक्ति को पैसे ये सोच कर कमाना चाहिए कि उसे अभी सौ साल जीना है और ये भी ध्यान में रखना चाहिए कि मृत्यु कभी भी आ सकती है। अर्थात नीति पूर्वक धर्म युक्त तरीके से १०० साल तक के लिए पैसा कमाने में कोई बुराई नहीं है ।

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