प्रदूषण का वर्तमान स्वरूप और भविष्य

Abhishek Kumar Pandey

Department of Botany, Kalinga University, Raipur

भारत में हर तरीके का प्रदूषण रोज नये कीर्तिमान स्थापित कर रहा है यदि हम समय रहते नहीं चेते तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे । भारत में किसी दूसरी बीमारी की तुलना में वायु प्रदूषण की वजह से लगभग २० लाख लोग हर साल मर जाते हैं । करोड़ो लोग अस्थमा, एलर्जी और श्वास से संबंधित बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं । विश्व के सबसे १०० प्रदूषित शहरों की सूची में भारत के ४६ शहर है । भारत के सभी बड़े शहरों की हवा जहरीली हो चुकी है । दिल्ली जैसे शहरों में रहने वाले लोग अपने फेफड़ों में दिन भर में २० सिगरेट पीने वाले लोगों के बराबर कोलतार जमा कर रहे हैं । ग्रीनपीस साउथ ईस्ट एशिया की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में ५४००० लोगों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से साल २०२० में हो गई है ।

भारत में छोटे शहर जिनकी आबादी २ लाख से ज्यादा नहीं है, उनका भी एयर क्वालिटी इंडेक्स २०० के ऊपर पार कर गया है जो कि अत्यंत खराब श्रेणी में आता है ऐसी अवस्था में घर से बाहर निकलना भी आपके फेफड़ों को कमजोर बनायेगा । बङे शहरों में रहने वाले लोग पीएम २.५ पाल्यूटेंट, ग्राउंड लेवल ओजोन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, ब्लैक कार्बन, मीथेन जैसे खतरनाक प्रदूषक तत्वों के सम्पर्क में रहते हैं । एक अनुमान के मुताबिक २०३० तक विश्व की शहरी आबादी का आधा हिस्सा भयानक वायु प्रदूषण का सामना करेगी जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव हम भारतीयों पर ही पड़ना है ।

अभी तक हमने सिर्फ वायु प्रदूषण की बात की, दूसरे प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट करने में भी कोई देश हमारा मुकाबला नहीं कर सकता ।देश के एक हिस्से जहां हमने जम कर हानिकारक कीटनाशक और खरपतवार का उपयोग किया है आज उस प्रदेश में सबसे ज्यादा कैंसर के रोगी पाये जाते हैं । अत्यधिक रसायनों के उपयोग से न सिर्फ मिट्टी प्रदूषित होती है बल्कि ये रसायन धीरे धीरे रिसते हुए भूमिगत जल में चले जाते हैं जहां ये भविष्य के लिए इस संचित जल को प्रदूषित करते हैं । बरसात के समय यही रसायन हमारे नदियों और झीलों में पहुंच जाते हैं । कोई भी फिल्टर इन रसायनों को पूरी तरह फिल्टर नहीं कर सकता

जल प्रदूषण की समस्या को देखते हुए तो ऐसा लगता है कि भारत को प्रकृति का कार्य करते हुए नदी बनाने की चेष्टा करनी होगी, क्योंकि हमने हर छोटी-बड़ी नदियों को कूड़ादान बनाकर रख दिया है । जहां शहरों का सारा अपशिष्ट हम नदियों में गिरा रहे हैं । जिसमें सीवेज से लेकर नालियों और नालों का पानी सब शामिल हैं । गंगा के प्रदूषण का हाल हम सबने देखा है और यमुना की दिल्ली की तस्वीर हर साल छठ में हमारे सामने आ ही जाती है । जब दिल्ली जो देश की राजधानी है जहां देश और प्रदेश के नीति नियंता बैठे हैं वहां यह हाल है तो बाकी नदियों की स्थिति का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है ।

देश की लगभग हर नदी भयानक तरीके से यूट्रोफिकेशन और अंसतुलित बायोलॉजिकल आक्सीजन डिमांड और केमिकल आक्सीजन डिमांड के दौर से गुजर रही हैं ।बची खुची कसर हमने तमाम तरीके के बांध बनाकर कर ली है । बांध की इस व्यवस्था से नदियों के बहने की गति प्रभावित होती है जिससे तमाम तरीके के बायोलॉजिकल कचरे को बहा कर ले जाने की नदियों की क्षमता प्रभावित होती है । इस जैविक अपशिष्ट में पोषण तत्वों की क्षमता अच्छी खासी मात्रा में होती है जिसकी वजह से ऐसे खरपतवार नदियों   के किनारे उगते हैं जो बहुत तेजी के साथ वाष्पोत्सर्जन करते हैं तथा नदी की चौङाई कम करते जाते हैं जिसकी वजह से नदियां अपने आप को संकटग्रस्त पाती है । यदि ऐसा ही कुछ साल और चला तो देश की हर छोटी-बड़ी नदी विलुप्त होने की कगार पर पहुंच जायेगी ।

   प्रदूषण की समस्या से जब लङने की बात आती है तब हमारा सिस्टम पूरी तरीके से विकलांग ही नजर आता है राजनीतिक पार्टियां एक दूसरे के ऊपर आरोप लगाकर ही शांत हो जाती है परन्तु इस दिशा में अभी तक कोई भी ठोस पहल नहीं की गई ।

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