डॉ. अभिषेक अग्रवाल सहायक प्राध्यापक इतिहास विभाग कला एवं मानवीकि संकाय, कलिंगा विश्वविद्यालय.. कोटनी नया रायपुर (छ.ग.) abhishek. agrawal@kalingauniversity.ac.in भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान हिन्दी पत्रकारिता की भूमिका अति महत्वपूर्ण रही। हिन्दी पत्रकारिता ने भारतीय जनमत को जागृत करने का कार्य किया। साथ ही धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आंदोलन को भी इससे बल मिला, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न कुरीतियों के विरूद्ध जनमत का विकास हुआ। राष्ट्रीय भावना के उदय एवं विकास में तथा राष्ट्रीय आंदोलन के प्रत्येक पहलू के विषय में हिन्दी प्रेस की भूमिका उल्लेखनीय रही है। हिन्दी में प्रकाशित समाचार पत्रों ने उपनिवेशवाद के विरुद्ध जनमत को बनाने तथा तीक्ष्ण करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। 19वीं शताब्दी में राष्ट्रीय आंदोलन में सर्वप्रमुख योगदान भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का है, जिनका हिन्दी पत्रकारिता में महत्वपूर्ण स्थान है। इन्होने 1867 में बनारस से कवि वचन सुधा का प्रकाशन किया। यह 19वीं शताब्दी की एक महत्वपूर्ण पत्रिका थी। इसकी सम्पादकीय टिप्पणियाँ अधिकांशतः राजनीतिक तथा सामाजिक विषयों पर होती थीं। तत्कालीन सभी समाचार पत्र इसके प्रभाव से ही राष्ट्रीयता की भावना से अनुप्रमाणित होने लगे। इसके प्रभाव से सरकार जितनी ही उत्तेजित हुई, जनता में उतनी ही चेतना फैली। उन्होने 1872 में हिन्दी में हरिश्चन्द्र मैग्जीन का भी प्रकाशन किया। इस पत्रिका में देश प्रेम और समाज सुधार के भाव अभिव्यक्त होते थे। बालकृष्ण भट्ट द्वारा 1877 ई. में इलाहाबाद से प्रकाशित हिन्दी प्रदीप राष्ट्रीय विचारों का पोषक, स्वाधीन विचारों का समर्थक तथा अपने समय के श्रेष्ठ समाचार पत्रों में से एक था। इसके अतिरिक्त स्वामी रामपाल सिंह द्वारा प्रकाशित हिन्दोस्तान उदार विचारों का समर्थक था। 1910 में गणेश शंकर विद्यार्थी ने तेजस्वी पत्र प्रताप का प्रकाशन कानपुर से किया। यह उग्र राष्ट्रीयता का पोषक और देशी रियासतों की जनता तथा किसान मजदूर का समर्थक था। हिन्दी पत्रकारिता ने राष्ट्रीयता के प्रचार-प्रसार में अभूतपूर्व योगदान दिया। इसने भारतवासियों को एक सूत्र में बांधने, आपसी सहमति के क्षेत्र के विस्तार में, विभिन्न समुदायों के बीच के विरोध और वैमनस्य को दूर करने, विभिन्न राष्ट्रीय, सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।