हठ योग ने आसन, प्राणायाम, बंध और मुद्रा का वर्णन किया है। मुदा शब्द मुदिता या प्रसन्नता से उत्पन्न हुआ है। योग में आसन के माध्यम से शरीर को बलशाली बनाया जाता है। प्राणायाम के माध्यम से प्राणों को और ऊर्जा को संरक्षित रखने और मन की चंचलता को कम करने का काम किया जाता है। हठ योग में मन को प्रसन्ता से भरा पूरा रखने के लिए और मानसिक रूप से स्थिरता की प्राप्ति के लिए जिन अभ्यासों को किया जाता है, उनको मुद्रा कहा जाता है। योग का मुद्रा विज्ञान विस्तार लिए हुए है किन्हीं ग्रंथों ने मुद्रा बंध और धारणा को एक साथ ही मुद्रा प्रकरण के अंतर्गत वर्णित कर दिया है. किन्हीं ने मुद्राओं को अलग से वर्णित किया है।
मुद्रा के अभ्यास से प्राणमय कोश और मनोमय कोश का संतुलन भी किया जाता है। मन और प्राण के माध्यम से विचारों का उद्भव होता है. इन विचारों से मन में भावों का उद्भव होता है, भाव संवेदनाएं मन को और पूरे व्यक्तित्व को प्रभावित करती है। इन भावनाओं को व्यक्त करने के लिए नृत्य में भी मुद्राओं को उपयोग किया जाता है ये मुद्राएँ हाथ पैर बैठने खड़े होने और चेहरे और आँखों के माध्यम से तैयार की जाता है जिससे नर्तक अपने इन मुद्राओं के माध्यम से अपने मन की बात दर्शकों तक प्रेषित करते हैं। अर्थात् मुद्राएँ न केवल भाव प्रदर्शन का काम करती है ये मन की संवेदनाओं और मन के विचारों को भी दूसरों की तरफ भेजने की क्षमता रखती हैं।
जिन मुद्राओं को व्यक्ति लम्बे समय तक लगाता है, उस मुद्रा से उत्पन्न भाव उसके स्थायी भाव बन जाते हैं। यदि किसी व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति की तीव्र अभिलाषा है और यदि यह ज्ञान मुद्रा का लम्बे समय तक अभ्यास करता है तो साधक का मन एकाग्र होकर ज्ञान प्राप्ति हेतु अग्रसर हो जाता है। घेरण्ड संहिता में महामुद्रा, नमो मुद्रा, उड्डियान बंध, जालंधर बंध, मूलबंध, महावेध मुद्रा, खेचरी मुद्रा, विपरीतकरणी मुद्रा, योनी मुद्रा, वज्रोणी मुद्रा, शक्तिचालिनी मुद्रा, ताडागी मुद्रा, माण्डुकी मुद्रा, शाम्भवी मुद्रा, पार्थिवी धारणा, आम्भसी धारणा, आग्नेयी धारणा, वायवीय धारणा, आकाशी धारणा, अश्विनी मुद्रा, काकी मुद्रा, मातंगी मुद्रा, और मुजगिनी मुद्रा, आदि पच्चीस मुद्राओं का महर्षि घेरंड ने वर्णन किया है। ये मुद्राएँ रिद्धि और ज्ञान देने वाली होती है। इन मुद्राओं का प्रयोग कर अपनी भावनाओं और विचारों को अपने कल्याण के लिए किया जा सकता है। इन मुद्राओं का शारीरिक लाभ होता है। मुद्राओं के साथ साथ बंधों के प्रयोग के द्वारा चक्रों का संतुलन भी किया जा सकता है। अनेक मुद्राओं से विभिन्न शारीरिक और मानसिक लाभ प्राप्त किये जा सकते है। कुछ रोगों से मुक्ति के लिए भी मुद्राओं का प्रयोग किया जा सकता है. जैसे विपरीत करणी मुद्रा के प्रयोग से थायरायड से संबंधित बीमारी को समाप्त करने में सहायता ली जा सकती है। तथा कुछ अन्य मुद्राओं का प्रयोग करके भावनात्मक असंतुलन को दूर किया जा सकता है।