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कुंवर नारायण की काव्य दृष्टि

डॉ श्रद्धा हिरकने

सह. प्राध्यापक

हिन्दी विभाग

कलिंगा विष्वविद्यालयए रायपुर

कुंवर नारायण की कविताओं को तीसरे सप्तक में स्थान मिला है I सप्तकों मेन कवियों ने अपनी कविता के संबंध में जो वक्तव्य दिए हैं उनसे उनकी काव्य दृष्टि पर प्रकाश पड़ता है I कुंवर नारायण ने भी तीसरे सप्तक की भूमिका में जो वक्तव्य दिया है वह उनकी काव्य दृष्टि को स्पष्ट करता है I  उनका काव्य संबंधी दृष्टिकोण अन्य कवियों से भिन्न है I  तीसरे सप्तक में उनका जो वक्तव्य प्रकाशित हुआ है उसमें जो विचार व्यक्त किए गए हैं वे निम्न बिंदुओं में स्पष्ट किए जा सकते हैं –

  1. कुंवर नारायण की कविता में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को महत्व देते हैं I वैज्ञानिक दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए कहते हैं यह वह वृष्टि है जो सहिष्णु और उदार मनोवृति से जुड़ी हुई है I वैज्ञानिक दृष्टि जीवन को किसी पूर्वाग्रह से पंगु करके नहीं देखती बल्कि उसके प्रति एक बहुमुखी सतर्कता बरती है I इसी संदर्भ में वे आगे कहते हैं कि वैज्ञानिक पूर्वाग्रह ग्रस्त नहीं होता उसके लिए कुछ भी आग्रह नहीं होता वह किसी वाद या सिद्धांत के संकुचित घेरे में बंध कर कार्य नहीं करता I उसकी दृष्टि निरपेक्ष एवं तटस्थ होती है I वह जिज्ञासु प्रवृत्ति का होता है और निरंतर चिंतन मनन करता रहता है I कवि को भी अपनी कविता में इसी दृष्टिकोण का सन्निवेश करना चाहिए I
  2. कुंवर नारायण की मान्यता है कि साहित्य का संबंध जीवन से होता है I कविता जब किसी ‘वाद’ के संकुचित घेरे में बंध जाती है तब उसमें से कवित्व नष्ट होने लगता है और उसकी स्वाभाविक ता समाप्त हो जाती है I कविता में अनुभूति के साथ-साथ विचार तत्व का होना भी आवश्यक है किंतु वह किसी ‘वाद’ के प्रचार में सहायक बन कर अपनी रमणीयता एवं स्वाभाविकता खो बैठती है I
  3. कवि की मान्यता है कि प्रयोग करना कवि का स्वभाव है I प्रत्येक कवि अपनी कविता में नए प्रयोग करता है I वस्तुतः प्रयोग तो वैज्ञानिक दृष्टिकोण का सूचक है अतः प्रयोग की आलोचना करना अनुचित है किंतु जहां प्रयोग ही कविता का इष्ट और लक्ष्य बन जाता है वहां वह अवश्य कविता के लिए घातक बन जाता है I
  4. कुंवर नारायण का मत है कि एक अच्छा कवि वही है जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हुए ऐसी काव्य रचना करें जिसमें जीवन के विविध रूप की अभिव्यक्ति की गई हो I वे कविता को जीवन की आलोचना मानते हैं कवि और वैज्ञानिक दोनों ही जिज्ञासु होते हैं I दोनों ही जीवन से जुड़े होते हैं और दोनों ही रूढ़ियों और परंपराओं की उपेक्षा करते हैं I अपनी कृति में नए प्रयोग करके नव सृजन के पथ पर अग्रसर होना दोनों का ही स्वभाव है I
  5. कवि स्थापित सत्य को उतना महत्व नहीं देता जितना उस बुद्धि को जिसमें उस सत्य की खोज की है I मानव की आस्था स्थापित मूल्यों के प्रति ना होकर अपनी बुद्धि के प्रति होनी चाहिए I जो सत्य बुद्धि को ग्राह्य नहीं है उसकी पुनर्परीक्षा करनी चाहिए I उनके अनुसार “मेरे लिए स्थापित सत्य चाहे वे राजनीतिक हो, चाहे सामाजिक हो, चाहे शास्त्रीय उतने महत्वपूर्ण नहीं जितनी वह बुद्धि जिसने उन तत्वों को जन्म दिया है I” वे कहते हैं कि सिद्धान्त गलत हो सकते हैं किंतु बुद्धि में अनास्थ नहीं रखी जा सकती I बुद्धि ही सत्य की परीक्षा निरपेक्ष एवं पूर्वाग्रह रहित होकर करती है और जीवन को उसकी समग्रता में समझने का प्रयास करती है I
  6. कुंवर नारायण की मान्यता है कि कविता में केवल भावना और संवेदना ही नहीं होनी चाहिए उसमें विचार चिंतन और दर्शन भी होता है I कविता को वह कोरी भावुकता का पर्याय मानने से इनकार करते हैं I वस्तुतः वही कविता स्थाई महत्व की होती है जो दर्शन एवं विचार की ठोस भूमि पर टिकी हो I जिस कविता को दर्शन का यह धरातल नहीं मिलता वह टिकाऊ नहीं होती I वर्षा जल की भांति व्यर्थ में बह जाती है I
  7. उन्होंने अस्तित्व की दो बुनियादी स्थितियों को स्वीकार किया है – व्यक्ति और उसका सामाजिक वातावरण इन दोनों ही स्थितियों का चित्रण उनकी रचनाओं में उपलब्ध होता है I
  8. कुंवर नारायण की कविता में विचार के साथ-साथ कविता के शिल्प को भी महत्व दिया गया है I वे कविता की बनावट और बुनावट दोनों को बराबर महत्व देते हैं I कवि शिल्प के स्तर पर अनेक प्रयोग करता है I नए बिम्ब, नए प्रतीक, नए उपमान, नई भाषा सब उसके उपकरण हैं I

निष्कर्ष –

कवि का कोई रूप नहीं है वह जीवन का व्याख्याता और आलोचक है अतः लोगों के सामने अनेक रूपों में आता है I जीवन की व्याख्या यह अपने ढंग से करता है उसका दृष्टिकोण जितना वैज्ञानिक होगा उसकी व्याख्या भी उतनी ही सशक्त सटीक एवं सक्षम होगी I कुंवर नारायण की कविता में प्रतीकों, मिथकों का प्रयोग भी पर्याप्त मात्रा में हुआ है I उनकी काव्य दृष्टि निश्चय ही अन्य कवियों से अलग है I वे यह भी मानते हैं कि कविता में कवि का व्यक्तित्व मुखरित होता है I 

 

संदर्भ ग्रंथ सूची :-

  1. कुंवर नारायण “अपने सामने” राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली I
  2. कुंवर नारायण “इन दिनों” राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली I
  3. कुंवर नारायण “आत्मजयी” भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन I
  4. कुंवर नारायण “प्रतिनिधि कविताएं” नई दिल्ली I
  5. कुंवर नारायण “शब्द और देशकाल” राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली I
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