अजय कुमार शुक्ल की कविताएँ

01.तुम्हें बचते रहना है

थोड़ी सी जमीन से

आकाश के सफ़र के लिए

बीज की तरह

खुद को बनाना।

देखना, उम्मीद के सपने

बनाना, हथियार

और सीखना लड़ाई

क्योंकि

जीने की लड़ाई अनवरत चलती रहेगी।

तुम्हें बचते रहना है

देर….और थोड़ी देर

तुम ही हो आखिरी हधियार

तुम्हारे जीते-जी

कभी नहीं होगी उम्मीद की हार।

02.यहीं से तो आ रही उम्मीद की रोशनी

इस छोटी खिड़की से

दिखता है चांद

थोड़ा सा आकाश

चंद सितारें।

यहीं से तो आ रही 

उम्मीद की रोशनी 

जिसे ललचाते हुए

देख रहा मेरा ब्रह्मांड।

इसी बंद कमरे में

शरारती आँखें

अब विश्वास दिला जाती 

सब कुछ तो है यहीं।

चलो,शुरु करें

हँसते-हँसते

बोलती आँखों की 

कहानी, फिर एक नयी।

03.हम इंतजार करेंगे

उन्हें इंतज़ार करने दो

उस जहरीली हवा का

जहाँ फहरा सके-

वो अपनी-अपनी ध्वजाओं को।

उन्हें इंतज़ार करने दो

काले,डरावने अंधेरे का

जहाँ जीवित करें-

वो बर्बर,मृत इंसानों को।

हम इंतजार करेंगे

बादलों के छंटने का

कोंपलों के पल्लवित होने का

जहाँ हम ताजी हवा मे साँस ले सकें ।

हम इंतज़ार करेंगे

काली दीवारों के टूटने का

दरवाजे-खिड़कियों के खुलने का

जहाँ हमारी प्रार्थनाएँ सच हो सकें ।

04.बचना मुश्किल है

दरवाजे-खिड़कियाँ बंद कर

कब तक बचोगे।

आती रहेंगी

किसी न किसी सुराख से

धमाकों की गूंज

अंधेरे की तरह फैलती

जहरीली हवा से

बचना मुश्किल है।

क्या करोगे-

जाति,धर्म और संस्कृति को बचाकर

जब तुम ही नहीं बचोगे।     

* कथादेश, वागर्थ, साक्षात्कार, संस्कृति-सम्वाद, कविता छत्तीसगढ़ आदि पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रुप से कविताओं का प्रकाशन।

* ‘समकालीन हिन्दी कविता में लोकतात्विक प्रवृत्तियों का अध्ययन’ पर पी-एचडी की उपाधि।

REFERENCES/CITATIONS:

UMESH KUMAR VISHWAKARMA PHD THESIS 2020.docx

Document UMESH KUMAR VISHWAKARMA PHD THESIS 2020.docx (D77848498)

Suraj Kumar Goshwami, final thesis ‘समकालीन हिन्दी कविता में लोकतात्विक प्रवृत्तियों का अध्ययन’.docx

Document Suraj Kumar Goshwami, final thesis ‘समकालीन हिन्दी कविता में लोकतात्विक प्रवृत्तियों का अध्ययन’ .docx (D57416622)

URL: https://pahleebar.wordpress.com/page/13/

अजय कुमार शुक्ल

प्राध्यापक (हिन्दी)

कलिंगा विश्वविद्यालय

नवां रायपुर

छत्तीसगढ़

 

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