प्राइवेट कंपनियां शोषण के कारखाने

Abhishek Kumar Pandey

Department of Botany, Kalinga University

एफडीआई और मेक इन इंडिया प्रोग्राम के अन्तर्गत भारत में कई सारी मल्टीनेशनल कंपनियां अपने उद्योग और कारोबार को लगा रही हैं तमाम सारी कम्पनियों की नजर भारत में बिजनेस फैलाने पर है । इस एक सौ चालीस करोड़ के देश में जहां सब कुछ तेजी से आसानी से बिक सकता है सभी की नजर इस देश के बाजारों पर है जो नजर से ओझल है जिसे देखकर भी अनदेखा किया जा रहा है वो इस देश का मजदूर हैं । भारत में मजदूरों और कामगारों की स्थिति दिन पर दिन शोचनीय और शर्मनाक करने वाली है । विदेशी कंपनियां सस्ते मजदूर और बङे बाजार की सुलभता के कारण भारत में आ तो रही हैं लेकिन बेरोजगारी की समस्या जस की तस बनी हुई है इसका प्रमुख कारण निजी कंपनियों की मनमानी ही है जो अपने मजदूरों को न तो उचित वेतन देना पसंद करती हैं और न भविष्य की सुरक्षा का कोई आश्वासन उन्हें इन कम्पनियों में काम करने पर उन्हें मिल पाता है ।

भारत में मजदूरों के हालात ऐसे हैं कि कम्पनियों यहां के लोगों को सरकार द्वारा स्थापित न्यूनतम मजदूरी भी देना पसंद नहीं करती । कानूनी हथकंडों से बचने के लिए ज्यादा सैलरी खातों में डालकर फिर दूसरे हाथ से पैसे वापस ले लिये जाते हैं साप्ताहिक अवकाश भी कई जगह दूभर है चिकित्सा अवकाश तो दूर की कौड़ी है । मजदूरों के शोषण का ये आलम है कि वो कम्पनी कम्पनी इसी तरीके के शोषण का शिकार होता रहता है नौकरी की सुरक्षा न होने की स्थिति में वो चुपचाप इसे सहता रहता है । आक्सफेम की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली समेत पूरे देश में मजदूरों और वर्किंग प्रोफेशनल की यही स्थिति है । कई औद्योगिक इकाइयों में मजदूरों को ईएसआई और अन्य बीमा सुविधाओं का लाभ भी नहीं मिलता । असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले विशेषकर दुकानों में काम करने वाले मजदूर और कामगार शोषण के भयानक दल दल में फंसे होते हैं न तो उन्हें कोई नियुक्ति पत्र मिलता है और न ही पीएफ । ऐसा देखा गया है कि अपने साथ बदसलूकी और नाइंसाफी की आवाज ये मजदूर नहीं उठा पाते हैं । हाल ही में सरकार द्वारा न्यूनतम मजदूरी ९८५० करने के बावजूद भी कई गैर सरकारी संगठन अपने पूराने ढर्रे पर ही तनख्वाह दे रहे हैं ।

मजदूरी में असमानता भी एक महत्वपूर्ण समस्या है जहां कामकाजी महिलाओं को न सिर्फ पुरुषों से कम वेतन पर काम पर रखा जाता है साथ ही नियोक्ताओं के द्वारा उनका भावनात्मक और शारीरिक शोषण भी किया जाता है । लाकडाउन में हम सभी ने देखा कि किस तरीके से दिन रात काम करने वाले मजदूरो से उनके नियोक्ताओं ने पीछा छुड़ाया । लाखों करोड़ो कमाने वाले ये लोग अपने मजदूरों के प्रति उदासीन बने रहे । सङक पर पैदल चलते हुए बेबस मजदूर एक विश्वशक्ति का दंभ भरने वाले इस देश के निति नियंताओं के मुंह पर तमाचे से कम नहीं । वो भी संवेदनशील होकर मजदूरों के हक में कुछ कानून बना सकते हैं ताकि किसी अमेरिकन राष्ट्रपति के आने पर हमें कुछ भी छुपाने की जरूरत न पड़े ।

अगर हमें मजदूरों की स्थिति सुधारनी है तो हमें नौकरी का अधिकार इनके लिए सुनिश्चित करना होगा जहां नियोक्ताओं से मजदूरी छीनने के अधिकार को खत्म करना होगा । नियोक्ता कुछ भी कर ले मजदूर को जब नौकरी से नहीं निकाल पायेंगे तब ही मजदूर अपने बाकी के हिस्से के लिए लङ पायेंगे । अन्यथा शोषण का ये भयानक चक्र यूं ही चलता रहेगा ‌|

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